अलीगढ़ से हिंदू महासभा का गांधी के तस्वीर पर गोली चलाने का वीडियो पूरे विश्व में जिस तरह से फैल रहा है, जिस प्रकार नाथूराम का भूत लोगों के सर चढ़कर बोल रहा है ऐसे में मुझे डॉक्टर राहत इंदौरी का एक शेर याद आ पड़ता है..

ये लोग पाँव नहीं जेहन से अपाहिज है

उधर चलेंगे जिधर रहनुमा चलाता है..

जब पूरी दुनियां हमारे बापू के आगे नतमस्तक है, दुनिया के महानतम लोगों ने गांधी के विचारों को स्वीकारा है तब गांधी की ही धरती उसे अपने से दूर कर रही है, गांधी के विचार उसके अपने ही देश में धूमिल हो रहे हैं, तब मुझे यकीन नहीं होता कि हम 21वीं शताब्दी में जी रहे हैं. यकीन नहीं होता कि यह चाणक्य की धरती है. क्या ये यही धरती है जहां भगवान बुद्ध, महावीर, गुरु नानक, संत कबीर जैसे लोग पैदा हुए? क्या ये वही देश है जहां पूरे विश्व से लोग ज्ञानार्जन के लिए आते थे? क्या ये वही धरती है जहां तर्क-वितर्क, वाद-विवाद मसले का हल हुआ करते थे?

फेसबुकिया और सड़क छाप देशभक्त के मुंह यह कहना आम बात हो गया है कि चरखे से हमें आजादी नहीं मिली.

लब उनके बोल रहे हैं क्योंकि हमारे होंठ सिले-सिले से हैं. वह गरज रहे हैं क्योंकि हमने बोलना छोड़ दिया है. ख़ुद को कुर्बान कर देने वाले किसी भी स्वतंत्रता सेनानि को नहीं भुलाया जा सकता. लेकिन सुनो, अगर चरखे से आजादी नहीं मिली तो चंद वारदात कर फांसी चढ़ जाने से भी नहीं मिली.

नए देश भक्तों सुनो, ईश्वर ने तुम्हें जो बुद्धि दी है उसका उपयोग करना सीखो और सोचो ऐसी क्या बात थी गांधी में कि अंग्रेज भी उनसे डरते थे. उनकी एक आवाज़ पर पूरा भारत लामबन्द हो जाता था. क्या था उस दुबले पतले शरीर में कि हर एक क्रांतिकारी नेता उनके आगे नतमस्तक था? उस वक्त भी और अब भी. क्यों नेहरू और सरदार वल्लभभाई पटेल भी मुश्किल घड़ी में उन्हीं से राय लेने जाते? क्या था उनमें जब उनकी अस्थिकलश ट्रेन से ले जाई जा रही थी तब ट्रेन के दोनों तरफ लाखों लोग खड़े होकर आंसू बहा रहे थे? सिर्फ कुछ सामुदायिक लोगों को छोड़कर जिनमें आर एस एस एंव हिंदू महासभा जैसे धार्मिक समूह के लोग शामिल थे जिनकी आजादी की लड़ाई में कोई योगदान नहीं था.

गोलियों से ना गांधी तब मरे थे ना अब, क्योंकि गांधी ने जो हमें मार्ग बताया था वह कभी न मिटने वाला मार्ग है. सत्य और अहिंसा के ऊपर ना कुछ था ना कुछ होगा. हम किसी भी धर्म के मानने वाले हो अगर हम सत्य के खिलाफ हैं, अहिंसा के खिलाफ हैं तो इसका मतलब है हम किसी ईश्वर को नहीं मानते.

सियासत में एक तरफ गांधी-गांधी का ढोंग किया जा रहा है तो दूसरी तरफ उन्ही के लोग नाथूराम की पूजा अर्चना में लगे हुए हैं.

कन्हैया कुमार पर देशद्रोह का मुकदमा चल रहा है और भी बहुत से लोग हैं जिन पर देशद्रोह का मुकदमा चल रहा है. भारतीय जनता पार्टी के जो तीन टॉम डिक एंड हैरी हैं उनके खिलाफ कुछ भी बोल कर देखो. आप पर भी देशद्रोह का मुकदमा चलने लगेगा.

मैं पूछता हूं उन आम जनता से जो कन्हैया पर चिल्ला रही थी. जो लोग #shutdownjnu campaign चला रहे थे. जबकि अदालत में यह साबित भी नहीं हुआ था कि कन्हैया ने देश विरोधि नारे लगाये हैं. वह कब उठेंगे और हिन्दू महासभा को बैन करने की मांग करेंगे? कब कहेंगे कि इन्हें देश से निकालो? वह कब कहेंगे गोडसे को पूजने वालों को जेल में डालो? हमारे प्रिय प्रधानमंत्री देश के गद्दारों के बारे में कब ट्वीट करेंगे?

यह आवाजें कैसे उठेंगी! ऐसे ट्वीट कैसे आएंगे! क्योंकि ये वही लोग हैं जो गांधी के विचारों को मारना चाहते हैं.

गांधी को ये लोग इसलिए पसंद नहीं करते क्योंकि गांधी के मन में सर्वधर्म सद्भाव की भावना थी. उनकी प्रार्थना सभा में कुरान की आयतें भी सुनाई देती थी. वह मुसलमानों के हक की बात करते नहीं थकते थे क्योंकि उन्हें लगता यह दुनिया सब की है. जिसे जहां रहना है रहे. किसी का हक ना मारा जाए. नेहरू भी इसी ख्याल की शख्सियत थे. तभी तो भगत सिंह भी नेहरू को एक युगांतकारी मानते थे.

दूसरी तरफ आर एस एस और हिंदू महासभा सिर्फ अपनी बातें करते थे. सिर्फ अपने हिंदू भाई-बहनों की. यह लड़ाई वहीं से शुरू हुई. शुरू से ही दोनों संगठन गांधी और नेहरू के विचारों से सहमत नहीं थे. तब से आज तक गांधी और नेहरू की छवि खराब करने की नाकाम कोशिश होती चली आ रही है.

सरदार पटेल की दुनिया की सबसे लंबी मूर्ति बनवाना उसी एजेंडे का एक हिस्सा है. सरदार पटेल के नाम का इस्तेमाल करके यह अपनी सामुदायिक ध्रुवीकरण को हवा दे रहे हैं. मैं पूछता हूं सरदार पटेल की जगह गांधी की मूर्ति क्यों नहीं बनवाई गई? क्योंकि सरदार पटेल भी पाकिस्तान की तर्ज पर हिंदुस्तान चाहते थे. जिस के पक्ष में ना ही गांधी थे और ना ही नेहरू. शायद इसलिए ही गांधी ने नेहरू को चुना.

बहुसंख्यक की सिर्फ कुछ प्रतिशत आबादी ही इस तरह के घटिया करतूतों में संलिप्त है. लेकिन वह सद्भाव रखने वाले लोगों, गांधीवादी लोगों पर हावी होते दिखाई पड़ रहे हैं. पहले तो ये उग्रता नहीं दिखाई पड़ रही थी. सोचने योग्य प्रश्न है आखिर किन ताकतों का सह उन्हें हासिल है?


Md. Mustaqueem
M A in Communication
Doon University, Dehradun

The writer, a native of Gopalganj in Bihar, has worked as a special correspondent to the Indian Plan magazine in Uttrakhand and is currently working as a teacher in a government middle school in Siwan district of Bihar.